कोरोना की दूसरी लहर के दौरान लाखों लोगों ने आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग करके स्वास्थ्य में सुधार पाया। आयुर्वेद, जो कि विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धतियों में से एक है, जिसमे औषधीय पौधों का प्रमुख स्थान है। कोरोना महामारी के समय वैश्विक स्तर पर औषधीय पौधों की मांग में तेजी आई, और इस दिशा में खेती करने वाले किसानों ने अच्छा लाभ कमाया।
कई प्रमुख कंपनियों के आयुर्वेदिक उत्पाद विश्वभर में प्रसिद्ध हैं और उनकी मांग लगातार बनी रहती है। इस पोस्ट में, हम किसानों को 5 महत्वपूर्ण औषधीय पौधों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। किसान भाई अपने क्षेत्र की जलवायु, मौसम और भूमि की विशेषताओं के आधार पर इन पौधों की खेती कर सकते हैं। कई राज्यों में सरकार की ओर से सब्सिडी और अनुदान भी उपलब्ध है।
भारत में पारंपरिक फसलों की तुलना में औषधीय फसलों का लाभ
भारत के अधिकांश किसान पारंपरिक फसलों की खेती में लगे हुए हैं, जैसे कि गेहूं, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना, सरसों, मूंगफली आदि। हालांकि, औषधीय फसलों की खेती में किसानों को एक हेक्टेयर में अधिक लाभ होता है। औषधीय पौधों की खेती से न केवल किसानों को अच्छा मुनाफा होता है, बल्कि फसल विविधता भी सुनिश्चित होती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, लंबे समय तक एक ही फसल उगाने से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है, इसलिए फसल विविधता के लिए औषधीय फसलों की खेती की सलाह दी जाती है। यदि गेहूं और धान के खेतों को खाली होने के बाद औषधीय पौधों की खेती की जाए, तो इससे मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और अगले सीजन में पारंपरिक फसलों की पैदावार बढ़ जाती है।
किसानों के लिए लाभकारी औषधीय पौधे
- अकरकरा (Akarakara) की खेती
अकरकरा, जिसे आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग किया जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। इसके बीज और डंठल का उपयोग दंतमंजन, दर्द निवारक दवाओं, और तेल बनाने में किया जाता है। अकरकरा की खेती 6 से 8 महीने की होती है और इसे समशीतोष्ण जलवायु में उगाया जाता है। भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र में इसकी खेती प्रमुख है। इसकी खेती कम मेहनत वाली और लाभकारी है। - अश्वगंधा (Ashwagandha) की खेती
अश्वगंधा, एक झाड़ीदार पौधा है, जिसे तनाव, चिंता, और बलवर्धक गुणों के लिए जाना जाता है। इसके जड़, पत्ती, फल, और बीज औषधि के रूप में उपयोग किए जाते हैं। कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली यह फसल किसानों को तीन गुना लाभ देने की क्षमता रखती है। अश्वगंधा की बुवाई जुलाई से सितंबर तक की जाती है और यह प्राकृतिक आपदाओं से कम प्रभावित होती है। - सहजन (Moringa) की खेती
सहजन में 90 प्रकार के मल्टी विटामिन्स, 45 प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट्स, और 17 प्रकार के एमिनो एसिड होते हैं। इसकी एक बार बुवाई के बाद चार साल तक दोबारा बुवाई की आवश्यकता नहीं होती। 10 महीने में एक एकड़ में एक लाख रुपए तक की आमदनी हो सकती है। सहजन का उपयोग सब्जी और औषधि बनाने में होता है। इसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। - लेमनग्रास (Lemongrass) की खेती
लेमनग्रास का तेल विटामिन ए और सेंट्रल की उच्च मात्रा से भरपूर होता है। इसका तेल कॉस्मेटिक्स, साबुन और दवाइयों में उपयोग होता है। यह फसल आपदा के प्रभाव से मुक्त है और इसकी एक बार रोपाई के बाद साल भर में 5-6 बार कटाई की जा सकती है। इसकी खेती में कम मेहनत और उच्च लाभ मिलता है। - सतावरी (Shatavari) की खेती
सतावरी, जिसे शतावरी भी कहा जाता है, औषधियों में इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती से एक एकड़ में 5-6 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है। इस फसल को तैयार होने में एक साल से अधिक समय लगता है, लेकिन एक बार तैयार होने पर किसानों को अच्छा लाभ मिलता है। यह पौधा कीट और जानवरों से भी सुरक्षित रहता है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और राजस्थान में बड़े पैमाने पर की जाती है।
इन औषधीय फसलों की खेती न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है बल्कि किसानों को पारंपरिक फसलों की तुलना में बेहतर आमदनी प्रदान कर सकती है।